क्या बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार है? जानिए बॉम्बे हाईकोर्ट के हालिया फैसले का असर Father’s Property Rights

क्या बेटियों को पिता की संपत्ति में अधिकार है? जानिए बॉम्बे हाईकोर्ट के हालिया फैसले का असर Father’s Property Rights

भारत में पारिवारिक संपत्ति से जुड़े मामलों में कानूनी जानकारी की कमी के कारण अक्सर विवाद उत्पन्न हो जाते हैं। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक ऐसा महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो पिता की संपत्ति में बेटियों के अधिकार से जुड़ा है। यह निर्णय उन मामलों को स्पष्ट करता है जहां पिता की मृत्यु 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के लागू होने से पहले हुई थी।


क्या कहा गया हाईकोर्ट के फैसले में?

बॉम्बे हाईकोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और जस्टिस जितेंद्र जैन शामिल थे, ने यह निर्णय दिया कि यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु 1956 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम लागू होने से पहले हो गई थी, तो उस व्यक्ति की बेटियों को उनकी संपत्ति में कोई अधिकार नहीं मिलेगा।


क्यों लिया गया यह निर्णय?

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि मृत्यु अधिनियम के लागू होने से पहले हुई, इसलिए उस समय के कानून ही लागू होंगे। उस दौर में बेटियों को उत्तराधिकारी नहीं माना जाता था, और संपत्ति केवल पुरुष सदस्यों में बांटी जाती थी।


केस स्टडी: यशवंतराव का मामला

पारिवारिक पृष्ठभूमि

यह मामला 1952 में यशवंतराव नामक व्यक्ति की मृत्यु से जुड़ा है। उनके परिवार में दो पत्नियां और तीन बेटियां थीं। पहली पत्नी लक्ष्मीबाई की मृत्यु 1930 में हो गई थी, जिसके बाद उन्होंने भीकूबाई से विवाह किया। भीकूबाई से उनकी एक बेटी चंपूबाई थी।


विवाद की शुरुआत

पहली पत्नी से जन्मी बेटी राधाबाई ने पिता की आधी संपत्ति पर दावा करते हुए मुकदमा दायर किया। हालांकि निचली अदालत ने उनका दावा खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ उन्होंने 1987 में हाईकोर्ट में अपील की।


1937 का हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम

हिंदू महिला संपत्ति अधिकार अधिनियम, 1937 का उद्देश्य विधवाओं को सीमित संपत्ति अधिकार देना था। इस कानून ने विधवाओं को पति की संपत्ति में सीमित उत्तराधिकार दिया, लेकिन बेटियों के अधिकारों को इसमें शामिल नहीं किया गया था।


यही कारण था कि यशवंतराव की दूसरी पत्नी भीकूबाई को संपत्ति का अधिकार मिला और उन्होंने वह संपत्ति अपनी बेटी चंपूबाई को दी।


1956 का हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम: क्रांतिकारी बदलाव

1956 में लागू हुआ हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम बेटियों के लिए एक ऐतिहासिक बदलाव लाया। इस अधिनियम के अनुसार, बेटियों को पिता की संपत्ति में बेटों के समान अधिकार प्राप्त हुए


लेकिन ध्यान दें कि यशवंतराव की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी, इसलिए उनकी संपत्ति का बंटवारा पुराने कानूनों के अनुसार ही हुआ और राधाबाई को अधिकार नहीं मिला।


न्यायाधीशों के बीच मतभेद और अंतिम निर्णय

इस मामले में दोनों न्यायाधीशों के बीच शुरुआती मतभेद हुआ। न्यायमूर्ति जैन ने 1937 और 1956 के कानूनों की व्याख्या करते हुए स्पष्ट किया कि महिलाओं के संपत्ति अधिकारों का उद्देश्य समय के अनुसार बदलता रहा है।


अंततः, खंडपीठ इस निष्कर्ष पर पहुंची कि राधाबाई को संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा क्योंकि उनके पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी।


फैसले का सामाजिक और कानूनी प्रभाव

यह निर्णय उन हजारों मामलों के लिए मार्गदर्शक है, जहां पिता की मृत्यु 1956 से पहले हुई थी और संपत्ति को लेकर विवाद अब भी जारी हैं।


हालांकि, 2005 में हुए संशोधन के बाद कानून ने बेटियों को और अधिक अधिकार प्रदान किए हैं। अब, बेटियों को भी बेटे के बराबर संपत्ति में अधिकार प्राप्त होता है, यदि पिता की मृत्यु 2005 के बाद हुई हो।


वर्तमान कानून: 2005 का संशोधन और बेटियों का अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के तहत:


बेटियों को सह-उत्तराधिकारी का दर्जा दिया गया है।


पिता की मृत्यु के बाद बेटियां संपत्ति में बराबरी का हिस्सा पा सकती हैं।


यह संशोधन केवल उन्हीं मामलों में लागू होता है, जहां पिता की मृत्यु 2005 के बाद हुई हो या संपत्ति का बंटवारा 2005 तक नहीं हुआ हो।


जानिए क्या सीख मिलती है इस फैसले से

कानून की तारीख और समय का बहुत महत्व है।


समाज और कानून दोनों समय के साथ बदलते हैं।


संपत्ति से जुड़े विवादों से बचने के लिए कानूनी जानकारी जरूरी है।


आज महिलाएं पहले की तुलना में अधिक कानूनी रूप से सशक्त हैं।


Disclaimer

यह लेख केवल सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए है। किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह के लिए कृपया कुशल व अनुभवी वकील से संपर्क करें। संपत्ति से जुड़े मामलों की प्रकृति अलग-अलग हो सकती है, इसलिए व्यक्तिगत मामले में विशेषज्ञ की राय आवश्यक है।


Vinita Singh

विनीता सिंह एक प्रतिभाशाली लेखिका और संपादिका हैं, जो एक प्रमुख न्यूज़ पोर्टल से जुड़ी हुई हैं। सरकारी योजनाओं, समाचारों, टेक्नोलॉजी और ऑटोमोबाइल से जुड़े विषयों पर उनकी संक्षिप्त लेकिन प्रभावशाली राय उन्हें पत्रकारिता की दुनिया में एक प्रिय और विश्वसनीय नाम बनाती है। उनकी लेखन शैली में सहजता और विषयों की गहरी समझ स्पष्ट झलकती है, जो पाठकों को लगातार आकर्षित करती है।

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